भगवान महावीर ने श्रावक के लिये बारह व्रतों का विधान किया है और उसे आगार धर्म कहा है। एक गृहस्थ भी बारह व्रतों के माध्यम से धर्म की आराधना कर सकता है और सुगति (देव गति) का अधिकारी बन सकता है। व्रत दीक्षा का अर्थ है– असंयम से संयम की ओर प्रस्थान। जैन श्रावक की साधना का अनिवार्य अंग है–बारह व्रत। अभातेयुप बारह व्रतों के प्रति श्रावक समाज की आस्था के जागरण एवं बारह व्रतों के समुचित प्रशिक्षण हेतु अपनी शाखा परिषदों के माध्यम से चारित्रात्माओं के सान्निध्य में ‘बारह व्रत कार्यशाला’ का आयोजन करती है।
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