श्रावक के बारह व्रतों में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत कहलाते हैं। सामायिक पहला शिक्षाव्रत है। दूसरे शिक्षाव्रत का नाम है देशावकाश व्रत। देश का अर्थ है छोटा या अंश। इस व्रत में अल्पकालिक तथा छोटे-से छोटे नियम के लिए अवकाश रहता है। जो लोग एक साथ दीर्घकालीन त्याग नहीं कर सकते, उनके लिए यह अभ्यास का सरल और सुंदर क्रम है। इसे चरित्र विकास की सहज प्रक्रिया माना जा सकता है। ध्यान सीखने वाला व्यक्ति एक साथ लम्बा ध्यान नहीं कर पाता। उसे पाँच से दस मिनट तक ध्यान का प्रयोग कराया जाता है। इसी प्रकार जो श्रावक पूरे दिन अहिंसा, सत्य आदि अणुव्रतों की साधना नहीं कर पाते, वे एक-दो घंटे के लिए संकल्प करके अपनी साधना को पुष्ट कर सकते हैं। यह अल्पकालीन अभ्यास पद्धति स्वीकृत संकल्पों को और अधिक करने में भी सहयोगी बनती है। श्रावक का ग्यारहवॉं व्रत और तीसरा शिक्षाव्रत है प्रतिपूर्ण पोषधोपवास। एक दिन और रात के लिए चारों आहार तथा सब प्रकार के सावद्य व्यापार का त्याग करने से यह अनुष्ठान होता है। इसे अष्टप्रहरी पोषध भी कहा जाता है। इसके दूसरे रूप में केवल पोषध शब्द का प्रयोग होता है। उसके अनेक प्रकार हैं। उपवास के साथ केवल रात्रि में पोषध किया जाता है। केवल दिन में पोषध करने की विधि भी चालू है। भोजन करके पोषध करने के प्रसंग आगम साहित्य में उपलब्ध हैं। चालू परम्परा में चार, छह और आठ प्रहर का पोषध होता है। उक्त सभी उपक्रमों को साधना के विशेष प्रयोग मानने चाहिए।
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