समाज में जैन संस्कार विधि का प्रचार-प्रसार भी परिषद् का एक महत्वपूर्ण उपक्रम है। जैन समाज कार्यक्रम जैन संस्कार विधि से हो उसके लिए अभातेयुप कार्य कर रही है। देश के अनेक क्षेत्रों में जैन संस्कार विधि से नामकरन, जन्म-दिवस, रजत-जयन्ती एवं वैवाहिक संस्कार आयोजित हो रहे है। इस कार्य को और अधिक प्रसारित करने की अपेक्षा है। उनके स्थानों पर हमारे जागरूक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ विशिष्ट व्यक्ति भी संस्कारक के रूप में हमारे साथ जुड़े हुए हैं। जैन संस्कार विधि का यह कार्य और मुखरित हो, ऐसी अपेक्षा है। कुछ ऐसी बातें जो विचारणीय है:- जहां भी जैन संस्कार विधि से कोई कार्य समायोजित होने वाला हो, वहां की स्थानीय परिषद् से आवश्य सम्पर्क किया जाये। जैन संस्कार विधि से आयोजित होने वाले विवाह संस्कार हेतु सम्बन्धित परिवार कम से कम 21दिन पूर्व में ही आवेदन करें। सभी आवश्यक कागजात आवेदन के साथ प्रस्तुत करें। जैन संस्कार विधि से आयोजित होने वाले समस्त कार्यक्रमों की विस्तृत सूचना मय फोटो प्रभारी, सह-प्रभारी तथा महामंत्री तक शीघ्रतिशीघ्र भिजवाएं। एक विनम्र अपील आप सभी महानुभावों से कि समय-समय पर अपने अमूल्य सुजावों से हमें लाभान्वित करते रहें ताकि इस विधि में समयानुसार कुछ अपेक्षित बातों, मंत्रो का समावेश कर सके तभी सही मायने में इस विधि का व्यहवारिक रूप और अधिक पुष्ट हो सकेगा। तेरापंथ समाज से जो भी जैन संस्कार विधि के कर्यो से जुड़ना चाहते हैं एवं अपनी सेवायें प्रदान करना चाहते है, वो व्यक्तिगत रूप से हमसे सम्पर्क करें ताकि आवश्यकता के समय उनका उपयोग हो सके।
प्रायः सभी लोग चाहते हैं कि जीवन हल्का हो, किन्तु कठिनाई यह है कि वे उसकी प्रक्रिया को नहीं अपनाते। प्रक्रिया को अपनाये बिना केवल कथन मात्र से जीवन हल्का हो जाये इसका अर्थ यह होगा कि बिना परिश्रम के ही मनुष्य को सब कुछ प्राप्त हो सकता है। पर वह न भूयं न भविस्सई न कभी हुआ है न कभी होगा। यदि वैसा प्रयोग किया जाए तो मेरे विचार में निश्चित ही जीवन हल्का हो सकता है। जहाँ जीवन है वहाँ अनेक प्रकार की स्थितियों में से गुजरना पड़ता है तथा अनेक प्रकार के संस्कारों से संस्कारित होना पड़ता है। उनमें परिष्कार की अपेक्षा है। मैं सोचता हूं कि जैन संस्कार विधि का प्रारम्भ इसी उद्देश्य से किया गया है। यह किसी के प्रति प्रतिक्रिया का रूप न होकर मात्र अपने आपको अल्पारंभ और अल्प परिग्रह की दिशा में ले जाने का प्रयत्न होगा तो निश्चित ही जीवन के लिए एक दिशादर्शन बन सकेगा।
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युगप्रधान गणाधिपति श्री तुलसी एक समर्थ आचार्य थे। उन्होंने अपने शिष्य समुदाय को सक्षम बनाया है, वर्चस्वी बनाया है। संग-संग श्रावक समाज को भी उन्होंने सुदृढ़ बनाया है। धर्म और अध्यात्म की अनेक विधाओं में उन्होंने पारंगत किया है। तेरापंथ का आगम साहित्य हो, योग साहित्य हो या और अन्य कोई भी साहित्य हो आज अतुलनीय माना जा रहा है। आचार्य श्री तुलसी भविष्य के संकल्पद्रष्टा थे और उनका आशीर्वचन रूप वाक्य था "शुभ भविष्य है सामने !” उस शुभ भविष्य की कामना हेतु समय-समय पर उन्होंने नव चिंतन कर, नव आरोहण स्तंभ समाज में स्थापित किए, उस आधार स्तंभ में से एक आधार स्तंभ है जैन संस्कार विधि। जैन संस्कार विधि जो एक छोटा सा बीज रूप था, आज मानो कल्पवृक्ष के समान विराटकाय हो गया है।
State Associate
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